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2025 जाते जाते बस यही कहना है।









अधूरे रिश्तों का हिसाब पूछो तो दिल आज भी चुप हो जाता है।
कुछ बातें थीं, जो कहनी थीं — पर वक्त की आवाज़ ज़्यादा तेज़ निकली।
ख़्वाब भी थे, जो कभी आसमान छूते थे, आज किसी कोने में धूल खा रहे हैं।
और जेब में बैठी ये आर्थिक तंगी — हर सपने से पहले अपना टैक्स मांग लेती है।
पर जीवन इतना भी बेरहम नहीं होता।
हर टूटन के बाद, एक छोटी-सी सीख चुपके से हाथ पकड़ लेती है।
हम गिरते हैं, पर फिर उठकर चलते भी तो हैं —
क्योंकि हमें मालूम है, हार मान लेने से कहानी खत्म हो जाती है।
नया साल मेरे लिए कोई आतिशबाज़ी नहीं —
ये उन सवालों का जवाब है, जिन्हें मैं पूरे साल टालता रहा।
ये हिम्मत जुटाने का मौसम है,
जहाँ मैं अपने बिखरे ख़्वाबों को फिर से सिलाई लगाऊँगा,
रिश्तों से नाराज़ नहीं रहूँगा — पर खुद से समझौता भी नहीं करूँगा।
शायद सबकुछ अभी ठीक नहीं है —
पर इतना ज़रूर है कि मैं अब रुकने वाला नहीं।
इस नए साल, मैं अपने दर्द को बोझ नहीं —
ईंधन बनाऊँगा।
यही मेरी नई शुरुआत है — अधूरी, पर सच्ची।


©नीतिश तिवारी।

    
 

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