अलविदा नहीं कहूँगा।
समय की कोठरी में
एक युग खत्म हो जाता है
दशकों की सेवा के बाद भी
मेरा कर्तव्य हमेशा याद आता है
मैं तो बस एक इंसान हूँ
खुद को ख़ुदा नहीं कहूँगा
मैं आज अलविदा नहीं कहूँगा।
स्मृतियों की किरणों में
सुप्रभात की तरह चमकते हुए
आप सभी ने साथ निभाया
परिवार की तरह हाथ बढ़ाया
मैं आपसे खुद को जुदा नहीं करूँगा
मैं आज अलविदा नहीं कहूँगा।
सफलता की ऊँचाई पर खड़ा
वक़्त का है अंत यहाँ पर
सेवा समाप्ति तो बस एक पड़ाव है
काम की संतुष्टि तो है दिल के अंदर
जो मैं कभी निभा नहीं पाऊँगा
ऐसा वादा नहीं करूँगा
मैं आज अलविदा नहीं कहूँगा।
संघर्ष पथ पर जो चुनौतियाँ आई
उसका मैंने डटकर मुकाबला किया
सभी दोस्तों और साथियों का
मुझे भरपूर सहयोग मिला
सत्य और निष्ठा ही मेरे जीवन का
हमेशा से मूल मंत्र रहा है
झूठ का कोई पर्दा नहीं रखूँगा
मैं आज अलविदा नहीं कहूँगा
मैं आज अलविदा नहीं कहूँगा।
©नीतिश तिवारी।
9 Comments
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 02 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।