Latest

6/recent/ticker-posts

बचपन वाला दौर और अंतर्द्वंद्व।


हिंदी कविता







दौर तो बचपन वाला ही चल रहा है
बस हम जवान हुए बैठे हैं ।
घर के सुनहरे पलों को छोड़ कर
बाहरी किराएदार हुए बैठे हैं ।
कुछ महीने ज़्यादा पड़ने लगें 
जहाँ हम वर्षों गुज़ार बैठे हैं । 
किसी से मिलने की तलाश में 
हम अपनों को दरकिनार कर बैठे हैं । 
बेचैनी , कौतूहल , अंतर्द्वंद्व जो कल भी थी 
उसे अभी तक अंदर जगाये बैठे हैं ।
पांच इंच में दुनिया को समेटने की तुच्छ कोशिश कर 
झूठे व्यपार में अपने को लगाए बैठे हैं ।

©शांडिल्य मनीष तिवारी।

Post a Comment

15 Comments

  1. रचना शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर 👌👌

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब ,सुंदर सृजन...

    ReplyDelete
  4. सच कहा आपने .....

    झूठे व्यपार में अपने को लगाए बैठे हैं

    ये क्या है एक अंतर्द्वंद ही तो है और क्या है

    👌👌💐💐💐

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर.

    ReplyDelete

पोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।