मोहब्बत का रस्म।

बात सिर्फ खूबसूरती की होती तो दिल बेकाबू ना होता, हम तो लुट गए थे उसके सादगी के अंदाज़ से, बिखरी जुल्फों में महकते खुशबुओं की जो बात थी, हम तो होश खो बैठे थे करके दीदार उस महताब के। गम की चादर ओढ़कर ज़ख्मों को सुलाया है मैंने, अपने आंसुओं से जलते ख्वाबों को बुझाया है मैंने, ये तकदीर की ख्वाहिश थी या जमाना बेवफा हो गया था, इस मोहब्बत के रस्म को बिना तारीख के भी निभाया है मैंने। ©नीतिश तिवारी।