ऐसा क्यूँ करती हो , तुम बार-बार, कि मेरी आँखों से पहुँच कर, मेरे दिल मे उतर जाती हो. और मैं फिर, एक द्वंद मे फँस जाता हूँ. कि मेरी आँखे खूबसूरत हैं या मेरा दिल. इतना याद क्यूँ करती हो मुझे, की हिचकियाँ रुकने का नाम नही लेतीं. और हर बार मैं तुम्हारे पास आने को बेताब हो जाता हूँ. ©नीतीश तिवारी