फ़ुर्सत में मैं ग़ज़ल लिखता हूँ, तेरी यादों का एक सफ़र लिखता हूँ. वो वक़्त जो थम सा गया था कभी, उस वक़्त की रगुजर लिखता हूँ. काली घटा और तेरी ज़ुल्फ़ो के बीच, गुजरा हुआ वो मौसम लिखता हूँ. हर एक रंग में और तेरे संग में, सपनो का एक शहर लिखता हूँ. कुछ बदहाली में तो कुछ खुशहाली में, ज़िंदगी का ये भ्रम लिखता हूँ. तेरी खुश्बू में और तेरी जूस्तजू में, अपने होने का वो वहम लिखता हूँ. तेरी धड़कन में और तेरी तड़पन में, अपने साँसों का वो सितम लिखता हूँ. तेरी आवारगी में और तेरी दीवानगी में, भटकते राहों का मंज़िल लिखता हूँ. फ़ुर्सत में मैं ग़ज़ल लिखता हूँ, तेरी यादों का एक सफ़र लिखता हूँ. अगर आपको मेरी ये ग़ज़ल पसंद आई हो तो शेयर ज़रूर कीजिए. धन्यवाद. © नीतीश तिवारी