जरुरत थी या मजबूरी ,
जो तुमने निभायी ये दूरी।
दस्तूर तुम्हारा ऐसा था ,
मैं चाँद कि आस में जगा था।
एक छोटी सी नादानी थी ,
जो रूठी हुई कहानी थी।
एक मौसम जो मेरे साथ था ,
एक उलझन जो तेरे पास था।
मेरा जिस्म तेरी पनाह में था ,
पर तेरा रूह न जाने किसके पास था।
©नीतिश तिवारी।
4 Comments
bahut bahut dhnywad
ReplyDeleteसुन्दर रचनायें।
ReplyDeleteमेरा जिस्म तेरी पनाह में था ,
ReplyDeleteपर तेरा रूह न जाने किसके पास था।
bahut khoob likha hai.
shubhkamnayen
Thank u so much
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।