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मरहम की दरकार है।




धूल उड़ने लगी है,
बारिश का इंतज़ार है।
दर्द बढ़ने लगे हैं,
मरहम की दरकार है।

Dhool udne lagi hai,
Barish ka intzaar hai.
Dard badhne lage hain,
Marham ki darkaar hai.

निराश हूँ, हताश हूँ पर नाक़ाम नहीं हूँ,
मैं तेरे साज़िश का कोई अंज़ाम नहीं हूँ।

Nirash hoon, hatash hoon par naqam nahin hoon,
Main teri sazish ka koi anzaam nahin hoon.

© नीतिश तिवारी।

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