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लघुकथा-घर की पंचायत।

Laghukatha--ghar ki panchayat




बेनीवाल जी अपने पंचायत के सरपंच रह चुके थे। अपने चार बच्चों में से तीन की शादी करने के बाद छोटी लड़की की शादी के लिए योग्य वर की तलाश में थे। 


"आजकल अच्छे लड़के मिलते कहाँ हैं हजारी जी"

बेनीवाल जी ने अपने बचपन के साथी और सुख दुख के सहयोगी हजारी जी के साथ अपनी चिंता ज़ाहिर किया।


"अरे मिलेंगे कैसे नहीं, आप प्रयास ही नहीं कर रहे हैं। मैंने बोला था आपसे कि अपने फौजी बेटे से बात करो। वो भी तो सरकारी नौकरी में है। कोई ना कोई उसका यार दोस्त होगा सर्विस में, बात बन जाएगी। आखिर सरकारी नौकरी की बात कुछ और ही होती है। बिटिया का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा।"

हजारी जी ने अपने बहुमूल्य सलाह से अवगत कराया।


कुछ दिन बाद ही बेनीवाल जी का फौजी लड़का छुटियों में घर आया तो उन्होंने बेटी की शादी की बात छेड़ दी। 

"बेटा, हम कह रहे थे कि बड़े वाले दामाद जी सरकारी नौकरी में हैं, सुमन के लिए भी कोई सर्विस वाला लड़का मिल जाता तो अच्छा होता। तुम्हारे नजर में कोई ऐसा लड़का है?"

"अरे बाबूजी, कहाँ सरकारी के चक्कर में पड़े हैं। कई लाख देने होंगे। इतने में कई काम हो जाएँगे।"

"लेकिन बेटा, घर की आखिरी शादी है। धूमधाम से होनी चाहिए और पैसे की क्या बात है, इतना जमीन है, एक बीघा बेच देंगे और क्या?"


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जमीन बेचने की बात सुनकर फौजी बेटे की भौहें तन गयी। चेहरा ऐसे हो गया मानो जंग के लिए जा रहा हो।

बगल वाले कमरे में से फौजी बेटे की बहू ने बोला," शादी के नाम पर सारा धन लुटा दीजिए। अभी कितने काम बाकी है घर में।"

फौजी बेटे की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी। बेनीवाल जी ने सरपंच रहते हुए ना जाने कितने झगड़ों को निपटाया था। लेकिन आज अपने घर के मामले को सुलझा नहीं पाए।


©नीतिश तिवारी।

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