Pic credit : Pinterest. तुम वापस आ जाओ ना! अब तेरे खयालों की खुशबू दरवाजे से नहीं आती। जब से तुमने मुझसे दूरी बनायी है तब से तुम्हारे खयाल कम आते हैं। दरवाजों से नहीं दरीचों से आते हैं। घर के आँगन के कोने में पड़ी हुई सिल बट्टे ने भी उम्मीद छोड़ दी है। वही उम्मीद की जब रोज सुबह शाम तुम उस पर मसाले पीसा करती थी । तुम्हारे हाथ पीले हो जाते थे हर रोज। बिल्कुल वैसे जैसे कि हर रोज तुम दुल्हन बनने को तैयार बैठी हो। Read also: पतंग और इश्क़। घर के दूसरी तरफ कुएँ के पानी की मिठास भी चली गई है। पहले उसी कुएँ के पानी से सींची गई सब्जियाँ कितनी स्वादिष्ट लगती थीं। अब तो घर की सब्जी भी बाजार जैसी लगती है बिल्कुल बेस्वाद। तुम्हारे बिन सब कुछ सूना सूना हो गया है। तुम वापस आ जाओ ना! ©नीतिश तिवारी। ये भी देखिए।