प्रेम-गीत।

मैं निश्छल प्रेम की परिभाषा को आज करूँगा यथार्थ प्रिय, ये प्रेम मेरा भवसागर है, इसमें नहीं है कोई स्वार्थ प्रिय। मेरा जी करता है हर रोज मैं तुमसे, करूँ एक नया संवाद प्रिय, कोई मतभेद नहीं कोई मनभेद नहीं, इसमें नहीं कोई विवाद प्रिय। उलझन भरी इस राह में तुम सुलझी हुई एक अंदाज़ प्रिय, मेरा रोम-रोम पुलकित हो जाता, कर रहा हूँ प्रेम का आगाज़ प्रिय। तुम नदी के तेज़ धारा जैसी एक चंचल सी प्रवाह प्रिय, रोज करता हूँ वंदन प्रभु से, तुमसे ही हो मेरा विवाह प्रिय। ©नीतिश तिवारी।