खुले आसमान में मैं अपने ख्वाब बुनता रहा, तेरी यादों के सहारे मैं उस रात जागता रहा, कयामत आ जाती तो मैं स्वीकार कर लेता पर, अफसोस, पतंग भी उ…
Read moreदेश का हुआ बुरा हाल है, गरीब अपनी दशा पर बेहाल है, और आज़ादी मना रहे हैं हम। ये कैसी आज़ादी और किसकी आज़ादी? बहू बेटियों पर हो रहा…
Read moreमेरे नाम का सिंदूर है उसकी माँग में, उसने हाथों में मेंहदी रचाई है मेरे लिए, जब जब धड़कता है मेरा दिल उसके लिए, बजती है उस…
Read moreपरत दर परत निकल रहा हूँ मैं। अपने ज़ख्मों से अब उबर रहा हूँ मैं।। तूने जिन राहों में बिछाये थे कांटें मेरे लिए। अब उन राहों से नहीं …
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