लो अच्छे दिन आ गए।

क़र्ज़ में डूबा किसान, इंसान बना अब हैवान, सो रहे हैं हुक्मरान, लो अच्छे दिन आ गए। जी भर के की मैंने पढ़ाई, मास्टर डिग्री भी मैंने पाई, पर नौकरी नहीं मिली भाई, लो अच्छे दिन आ गए। महंगाई का हुआ है ऐसा हाल, थाली से गायब हुए सब्ज़ी दाल, जनता किससे करे जवाब सवाल, लो अच्छे दिन आ गए। नेता को काम की फिक्र नहीं, चुनावी वादों का कोई जिक्र नहीं, हो रही है डिग्री की पड़ताल, लो अच्छे दिन आ गए। लोग तो हर साँस में बसे थे, मैं भी उनकी खुशबू बन गया था, एक आईना टूटा सब बिखर गया, लो अच्छे दिन आ गए। ©नीतिश तिवारी।