मैं जीत जाऊं या मैं हार जाऊं, बस ख्वाहिश यही है कि मैं दरिया ये पार जाऊं। मैं किसी के दिल में रहूँ या किसी की यादों में रहूँ, बस ख्वाहिश यही है कि मैं अपनों की निगाहों में रहूँ। मैं उजालों में रहूँ या अंधेरों में भटकूँ, बस ख्वाहिश यही है कि मैं अपने मंजिल तक पहुँच सकूं। मेरा नाम हो या मैं गुमनाम हो जाऊं, बस ख्वाहिश यही है कि मैं एक इन्सान बन जाऊं। ©नीतिश तिवारी