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Wednesday, June 25, 2014
Tuesday, June 10, 2014
ये शायर जवान नही है.
कौन कहता है इस दिल में तेरे निशान नही है,
शीशे के घर तो बहुत हैं पर पक्के मकान नही हैं,
उम्मीद के दियों को इन आँधियों ने बुझा डाला,
पुरानी हवेली के पीछे अब मेरी दुकान नही है.
सोचता हूँ फिर से निकलूं तेरी गली से,
अब वो रास्ता सुनसान नही है,
फिर से लिखूं कुछ तेरी याद में,
पर अब ये शायर जवान नही है.
with.....love.....your....nitish.
Sunday, June 8, 2014
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
कोई शब्द मिले,
कोई राग छिड़े,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
मोहब्बत फिर से हो,
इबादत फिर से हो,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
फ़िज़ाये फिर से महकें ,
घटायें फिर से बरसें ,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
फिर से वही रात हो,
थोड़ी सी मुलाकात हो,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
कँगना फिर से खनके ,
बिंदिया फिर से चमके ,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
नज़रें फिर से देखें ,
धड़कन फिर से धड़के ,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
फिर से तेरा दिदार हो ,
महकी फ़िज़ा में बहार हो,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
फिर से मुझे नींद ना आये ,
फिर से किसी कि याद सताये ,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
नीतीश
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