भटकते राहों में भी मंज़िल की तलाश रहती है.
सूखे दरिया में भी एक पानी की प्यास रहती है.
सूनी गलियों में भी उसके आने की आस रहती है.
भीगी पलकों में भी मुस्कुराने की चाह रहती है.
तूफ़ानों में भी चिरागों के जलने की आस रहती है.
इस तन्हाई में भी एक महफ़िल की तलाश रहती है.
होठों से कही तेरी हर बात याद रहती है.
इन आँसूओं की एक बरसात साथ रहती है.
उम्दा लिखा है..
ReplyDeletedhnywad aapka
ReplyDeleteAcha hai, Nitish... likhte raho...
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteउम्दा
ReplyDeleteशुक्रिया।
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