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खुद को मोहब्बत का ज्ञाता समझा था।





तुमने कभी सुनने की कोशिश ही नहीं की,
ना ही मेरे किसी बात को तवज़्ज़ो दिया,
अब दूर हो मुझसे बरसों से,
और कहते हो कि मुझे दूर क्यों किया?

कितनी चालक हो तुम,
थोड़े बदमाश भी हो तुम,
मेरे पास तो ऐसी नहीं थी,
अब किस गैर के पास हो तुम?

फूलों के बीच मुझे काँटा समझा था,
तुमने मुझे धन का दाता समझा था,
कितने खुदगर्ज खयालात थे तुम्हारे,
सिर्फ़ अपने को मोहब्बत का ज्ञाता समझा था।

©नीतिश तिवारी।



 

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11 Comments

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 08 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर जी।

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