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मोहब्बत हुए ज़माना गुज़र गया .


                
     
   काबिल-ए-तारीफ थी तेरी वफ़ा-ए-मोहब्बत,
   सबको आबाद करके हमे बर्बाद किया.

   मत पूछो मुझसे तरकीब आज़माने की,
   उनसे मोहब्बत हुए ज़माना गुज़र गया .

   उस बरसात की रात का भी क्या सुरूर था,
   वो लिपटे जिस्म से थे और मेरा रूह उनसे दूर था.

                   बरसों से निगाह थी उसकी मेरे दिल के खजाने पर,
                   वो लूटता चला गया और मैं तन्हा खड़ा रहा.

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