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लघुकथा- दहेज.























भानु गुप्ता जी अपने शहर के मशहूर बिजनेसमैन थे. गुप्ता जी के बेटे की आयु 35 को होने को थी. इसलिए बेटे की शादी को लेकर परेशान रहते थे. बेटा सरकारी विभाग में क्लर्क था. रिश्ते तो कई आए लेकिन कहीं बात नहीं बन रही थी. शहर के मशहूर व्यापारी होने के कारण गुप्ता जी सामाजिक कार्यक्रम में भी हिस्सा लेते रहते थे.
आज उनके पड़ोस वाले वर्मा जी उनके बेटे के लिए एक रिश्ता लेकर लड़की के परिवार वालों के साथ आए थे. लड़का-लड़की एक दूसरे को पसंद आ गये. मामला रुका था तो बस दहेज की रकम को लेकर. गुप्ता जी की माँग दस लाख रुपये की थी लेकिन लड़की पक्ष पाँच लाख से ज़्यादा नहीं दे रहे थे.

रुपयों को लेकर बात चल ही रही थी की गुप्ता जी का फ़ोन बजा. गुप्ता जी, "हैल्लो".
"हाँ मैं रामवीर शर्मा बोल रहा हूँ. आज आपको 'दहेज एक कुरीति' के कार्यक्रम में आना था ना"
गुप्ता जी ने कार्यक्रम में आने का आश्वासन देकर फ़ोन रख दिया.

©नीतिश तिवारी.

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6 Comments

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-01-2018) को "मकर संक्रंति " (चर्चा अंक-2848) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हर्षोंल्लास के पर्व लोहड़ी और मकर संक्रान्ति की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुंदर व्यंग्य सत्य के साथ

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  3. कथनी और करनी में फ़र्क

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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