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आज फिर खयाल आया।




आज फिर खयाल आया कि कुछ पैगाम लिखूँ ,
लब पर तेरा नाम लिखूँ  या तुझे अपनी जान लिखूँ। 

आज फिर खयाल आया कि कुछ सौगात लिखूँ ,
नींदों में बसे ख्वाब लिखूँ या तेरी कही हर बात लिखूँ। 

आज फिर खयाल आया कि कुछ तहरीर  लिखूँ ,
परदे के पीछे कि तस्वीर लिखूँ  या अपनी रूठी तकदीर लिखूँ। 

आज फिर खयाल आया कि कुछ अंज़ाम  लिखूँ ,
उस महफ़िल की वो ज़ाम लिखूँ  या दुनिया का इल्ज़ाम लिखूँ। 

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